भारत के पुनर्बोध के लिए व्युपनिवेशीकरण आवश्यक : प्रो. गोपाल कृष्ण ठाकुर
भारत के पुनर्बोध के लिए व्युपनिवेशीकरण आवश्यक : प्रो. गोपाल कृष्ण ठाकुर
वर्धा, अप्रैल (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के शिक्षा विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. गोपाल कृष्ण ठाकुर ने कहा कि भारत के पुनर्बोध के लिए व्युपनिवेशीकरण अत्यंत आवश्यक है। वे दूर शिक्षा निदेशालय के तत्वावधान में आयोजित श्री धर्मपाल स्मृति व्याख्यानमाला के अंतर्गत “भारतीय मानस का व्युपनिवेशीकरण : धर्मपाल की दृष्टि से स्वदेशी ज्ञान-संपदा का पुनरान्वेषण” विषय पर आयोजित एकल व्याख्यान में संबोधित कर रहे थे। यह व्याख्यान सोमवार, 28 अप्रैल को पंडित मदन मोहन मालवीय भवन के सभागार में संपन्न हुआ। इस व्याख्यानमाला का आयोजन दूर शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्द पाटील की पहल पर भारत बोध को जाग्रत करने के उद्देश्य से प्रतिमाह किया जा रहा है। इस अवसर पर प्रो. आनन्द पाटील ने प्रस्तावना प्रस्तुत की।
प्रो. ठाकुर ने कहा कि भारत की ज्ञान-संपदा से जुड़े अनेक तथ्य आज भी उजागर नहीं हो पाए हैं। हमें अपनी परंपराओं और विविधताओं का गहन अध्ययन कर उनका संकलन करना होगा, ताकि भावी पीढ़ियाँ अपने गौरवशाली अतीत से परिचित हो सकें। उन्होंने बताया कि श्री धर्मपाल ने सेवाग्राम, चेन्नई और इंग्लैंड में भारतीय समृद्ध ज्ञान-संपदा से संबंधित सरकारी दस्तावेजों का अध्ययन कर उन्हें पुस्तकों के माध्यम से सामने लाया।
प्रो. ठाकुर ने कहा कि उपनिवेश काल से पूर्व भारत अनेक क्षेत्रों में अत्यधिक समृद्ध था—चाहे वह ढाका की मलमल हो, मालाबार का कपास, या लोहा एवं मसाले। उन्होंने जोर दिया कि भारतीय मानस के व्युपनिवेशीकरण की आवश्यकता है, ताकि धर्मपाल की दृष्टि से भारत के स्वदेशी ज्ञान और इतिहास का बोध पुनर्स्थापित हो सके।
उन्होंने मद्रास प्रेसिडेंसी के सन् 1822-1825 के सर्वेक्षण का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय सभी समुदायों के लोग महाविद्यालयों में अध्ययन करते थे, जिसे थॉमस मुनरो ने दर्ज किया था। आगे उन्होंने कहा कि प्राच्य और पाश्चात्य विचारधाराओं के संघर्ष के चलते प्राच्यवादी दृष्टिकोण लुप्त हो गया। इसा पूर्व 3102 में खगोलीय विद्या की समृद्ध परंपरा थी, जो हमारे समक्ष नहीं आ सकी। इसी प्रकार आयुर्वेद और होमियोपैथी जैसी भारतीय चिकित्सा विधाओं को छद्म चिकित्सा के रूप में प्रचारित कर हमारे मानस का उपनिवेशीकरण किया गया। परिणामस्वरूप हम बौद्धिक उपनिवेशक बन गए।
प्रो. ठाकुर ने कहा कि धर्मपाल ने हमें अपनी ज्ञान-संपदा के पुनरान्वेषण के लिए गंभीर अध्येता बनने का आह्वान किया, ताकि हमारा आत्म-गौरव पुनः जाग्रत हो सके।
कार्यक्रम में प्रो. आनन्द पाटिल ने बताया कि धर्मपाल स्मृति व्याख्यानमाला के अंतर्गत प्रतिमाह एक व्याख्यान आयोजित किया जाएगा। इन व्याख्यानों को लिपिबद्ध कर वर्ष के अंत में पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जाएगा, जो भारतीय ऐतिहासिक ज्ञान परंपरा का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज सिद्ध होगा।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अध्यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। साथ ही, क्षेत्रीय केंद्र कोलकाता एवं प्रयागराज के अध्यापकों एवं विद्यार्थियों ने भी ऑनलाइन सहभागिता निभाई।
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