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पशुपालन विभाग द्वारा पोल्ट्री बर्ड स्वाब, मल नमूना निरीक्षण की कार्यवाही प्रारंभ

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पशुपालन विभाग द्वारा पोल्ट्री बर्ड स्वाब, मल नमूना निरीक्षण की कार्यवाही प्रारंभ

पशुपालन विभाग द्वारा पोल्ट्री बर्ड स्वाब, मल नमूना निरीक्षण की कार्यवाही प्रारंभ
ठीक से पका हुआ चिकन खाने से जीवाणु का कोई संक्रमण नहीं होता : डॉ. प्रवीणकुमार देवरे

पुणे, फरवरी (जिमाका)
पोल्ट्री पक्षियों का ‘गुलियन बैर सिंड्रोम’ बीमारी के फैलने से संबंधित रहने की संभावना को सत्यापित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के निर्देशानुसार खडकवासला बांध के पास की बस्तियों में पोल्ट्री पक्षियों के क्लोएकल स्वाब नमूने, मल के नमूने, पानी के नमूने एकत्र किए गए हैं और जांच के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे को प्रस्तुत किए गए हैं। यह जानकारी पशुपालन आयुक्त डॉ. प्रवीण कुमार देवरे ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से दी है।

खडकवासला बांध के पास की बस्तियों में ‘गुलियन बैर सिंड्रोम’ के प्रकोप की पृष्ठभूमि में इस बीमारी के कारणों में मुर्गीपालन शामिल रहने की साथ ही यह बीमारी दूषित पानी के माध्यम से फैल रही है, यह अनुमान लगाया गया था।

पशुपालन विभाग की टीम ने प्रभावित क्षेत्र में पानी का मुख्य स्रोत वाले खडकवासला बांध क्षेत्र में 11 पोल्ट्री फार्मों का दौरा किया, जो इस क्षेत्र में वेंकटेश्वर समूह के 6 अंडे देनेवाले मुर्गी पालन क्षेत्र और 5 व्यक्तिगत ब्रॉयलर पालन क्षेत्र हैं। यह देखा गया कि वेंकटेश्वर समूह के पोल्ट्री फार्म में जैव सुरक्षा का पालन किया जा रहा है और दो फार्मों में पक्षियों की बीट उपचार प्रणाली है। अन्य क्षेत्रों पर कूड़ा भंडारण की व्यवस्था है। इन पक्षियों का खाद कृषि के लिए उर्वरक के रूप में बेचा जाता है। व्यक्तिगत कुक्कुट पालकों के 5 खेतों पर गद्दा विधि द्वारा ब्रायलर मुर्गीपालन किया जा रहा है। इस क्षेत्र में बैच लगभग 45 दिनों में बिक्री के लिए तैयार हो जाते हैं। पक्षी बिक्री के बाद पोल्ट्री कूड़े को कृषि के लिए उर्वरक के रूप में उपयोग किया जाता है। टीम ने पाया है कि इन क्षेत्रों से निकलनेवाला अपशिष्ट आस-पास के जल स्रोतों के साथ मिश्रित नहीं होता है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे संस्था से प्राप्त निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार कुल नमूनों में से 106 क्लोएकल स्वैब 89 व पोल्ट्री मल 17 साथ ही नमूनों (9 क्षेत्रों से 2 पोल्ट्री मल और 22 क्लोएकल स्वैब नमूने) कम्पायलोबैक्टर जेजुने जीवाणु के लिए सकारात्मक आई है। एक क्षेत्र से 5 नमूने नोरोवायरस के लिए सकारात्मक पाए गए। नेशनल वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट ने पोल्ट्री फार्म से 29 पानी के नमूनों का परीक्षण किया है, जिनमें से 26 पानी के नमूनों में कम्पायलोबैक्टर जेजूनाय के लिए नकारात्मक परीक्षण किया गया है और शेष 3 नमूनों की जांच चल रही है। पोल्ट्री फार्म मालिकों को जैव सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। व्यक्तिगत स्वच्छता व क्षेत्र कीटाणुशोधन नियमित रूप से किया जाना चाहिए। किसी भी मुर्गी का मल जलाशय में न जाए, इसका ख्याल रखें। यह निर्देश पशुपालन विभाग ने दिए हैं।

कुक्कुट पक्षियों की आँतों में कम्पायलोबैक्टर जेजूनाय एक जीवाणु सामान्य रूप से होता है। यह जीवाणु अन्य जानवरों और मनुष्यों में भी पाया जाता है। यह वैज्ञानिक जानकारी है। क्षेत्र के पोल्ट्री फार्मों से निकलनेवाला सीवेज या मल आसपास के जल स्रोतों में मिश्रित नहीं हो रहा है। कुछ टेलीविज़न चैनल यह बीमारी कुक्कुटपक्षियों से फैलती है, ऐसी झूठी खबर फैला रही हैं। इससे पोल्ट्री व्यवसायी के व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और नागरिकों में भी भ्रम की स्थिति निर्माण हो रही है।

नागरिकों से अपील

बरसात के मौसम में कॉलरा जैसी बीमारियाँ दूषित भोजन व पानी के कारण होती हैं व कम्पायलोबैक्टर जेजूनाय जीवाणु बीमारी का कारण बन सकता है। यह जीवाणु कच्चे अधपकी मांस से फैलता है। इसके लिए पानी को उबालकर उचित मात्रा में ब्लीचिंग पाउडर प्रक्रिया करके पीने के लिए उपयोग करना चाहिए। सब्जियों और मांस को साफ करके और पूरी तरह से पकाकर ही खाना चाहिए। यह बीमारी संक्रामक नहीं है, इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है। ठीक से पका हुआ चिकन खाने से इस जीवाणु का कोई संक्रमण नहीं होता है, इसलिए चिकन खाने में कोई दिक्कत नहीं है।

-डॉ. प्रवीणकुमार देवरे (पशुपालन आयुक्त)

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