अध्यात्मिक सेवा के शिल्पकार गुरुवर्य ह.भ.प.स्व. भानुदास (अण्णा) महाराज तुपे
अध्यात्मिक सेवा के शिल्पकार गुरुवर्य ह.भ.प.स्व. भानुदास (अण्णा) महाराज तुपे
वर्ष 1999 में मैं कला शाखा में अपनी अंतिम वर्ष की परीक्षा के लिए अध्ययन कर रहा था। हमारे पिता श्री अरुणदादा बेल्हेकर काम से घर आए, दादा की शाम की पूजा चल रही थी। अचानक हमारे घर के दरवाजे पर वारकरी सम्प्रदाय के वस्त्र परिधान किए गए एक व्यक्ति जोर से आवाज दे रहे थे, क्या हमारा अरुण दादा घर पर है? मैं दरवाजे पर गया और कहा कि दादा घर में हैं, आप आइए वह व्यक्ति थे ह.भ.प.स्व. भानुदास (अण्णा) महाराज तुपे।
जैसे ही हमारे दादा ने अण्णा को देखा उन्होंने उनके पैर छूकर दर्शन लिए, उन्होंने मुझे भी बुलाया और मैंने भी अण्णा के दर्शन लिए। अण्णा ने दादा से कहा, मैं आपसे कुछ जरूरी बात करना चाहता हूं। तब अण्णा ने मुझे भी बुलाया और कहा कि तुम भी हमारे साथ बैठो तुम्हारी पीढ़ी को इसकी जरूरत है। अण्णा ने कहा कि आपके गांव में हरिनाम सप्ताह शुरू कीजिए। दोनों के बीच करीब तीन घंटे तक लंबी बातचीत हुई और अंत में अण्णा ने कहा कि दादा आप गांव के सामने सकारात्मक रुख रखें, मैं खुद आऊंगा, ऐसा बताया।
अगले दिन दादा अपने करीबी दोस्तों पांडुरंग हरिभाऊ घुले और भाऊसाहेब मुरकुटे से मिले और उन्हें अण्णा के साथ हुई चर्चा का विवरण बताया। इसमें से यह निर्णय लिया गया कि मांजरी बुद्रुक गांव के सभी प्रमुख परिवारों के व्यक्ति और काकड़ आरती के भजनी मंडल को भैरोबा मंदिर में बैठक में बुलाया जाना चाहिए। इस बैठक में ग्राम प्रधानों की उपस्थिति थी। अण्णा ने मांजरी बुद्रुक गांव में हरिनाम सप्ताह आयोजित करने का प्रस्ताव रखा और सभी ग्रामवासियों को बहुमूल्य मार्गदर्शन दिया।
कई लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए। सभी ने अण्णा के प्रस्ताव का स्वागत किया, हम गांव में हरिनाम सप्ताह शुरू कर रहे हैं, सुझाव दिया गया कि आप हमारा मार्गदर्शन करें।
अण्णा ने कहा कि मैं आपको पूरे कार्यक्रम के लिए आवश्यक मार्गदर्शन दूंगा। इस समय दादा ने गांववालों को बताया कि हरिनाम सप्ताह की योजना कैसे बनाई जाए, सभी ग्राम प्रधानों ने कहा कि पैसे की चिंता मत करो। आप अण्णा को लेकर हरिनाम सप्ताह का कार्य प्रारम्भ कीजिए। अंततः अण्णा के आशीर्वाद से 5 जून 1999 से 12 जून 1999 तक कृष्णाजी खंडूजी घुले विद्यालय में अखण्ड हरिनाम सप्ताह एवं सामूहिक ज्ञानेश्वरी पारायण समारोह प्रारम्भ हुआ। यह सप्ताह कुछ अलग ही प्रकार का था, जिसमें ज्ञानेश्वरी पारायण, महिला भजन, गाथा भजन, व्याखान, प्रवचन, कीर्तन, भारुड़ जैसे कई कार्यक्रम हुए।
सप्ताह की शुरुआत के लिए आवश्यक सामग्री, फोटो, मंच अण्णा ने स्वयं उपलब्ध कराया। आलंदी के छात्र गायनाचार्य, मृदुंगाचार्य सभी अण्णा के संपर्क के माध्यम से सप्ताह में शामिल हुए। उद्यमी विट्ठल (अण्णा) भापकर के नेतृत्व में एक हरिनाम सप्ताह समिति का गठन किया गया, जिसने सप्ताह के आयोजन के लिए प्रमुख वित्तीय सहायता प्रदान की। गाँववालों ने इस सप्ताह की प्रमुख जिम्मेदारी हमारे दादा को दी। दादा के अधीन पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में मैं (शैलेन्द्र अरुण बेल्हेकर) था।
अण्णा के संपर्क में प्राचार्य शिवाजीराव भोसले, डॉ. रामचन्द्र देखणे, ज्ञानेश्वर तांदले, डॉ. अरविंद नेरकर, सदानंद मोरे, हरि नरके, स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, भारुडकर लक्ष्मणका राजगुरु जैसे विद्वानों के विचार सुनने का अवसर ग्रामीणों को मिला। अण्णा के मार्गदर्शन में शुरू हुआ अखंड हरिनाम सप्ताह अब अपना रजत जयंती वर्ष मना रहा है।
मांजरी बुद्रुक गांव के अध्यात्मिक सेवा के शिल्पकार सही मायने में गुरुवर्य ह.भ.प. स्व. भानुदास (अण्णा) महाराज तुपे हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि अण्णा न केवल मांजरी बुद्रुक गांव में बल्कि हवेली तालुका के पंचक्रोशी के वारकरी संप्रदाय के आध्यात्मिक गुरु थे। सुख-दुख में भगवान को याद करनेवाले अण्णा मेरे जैसे युवा कार्यकर्ताओं के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहेंगे। हाल ही में अण्णा वैकुंठवासी हुए। यह एक लेख के रूप में अण्णा के साथ मेरे जुड़ाव को प्रस्तुत करने का एक छोटा सा प्रयास है।
रामकृष्ण हरी!
– शैलेंद्र (आबा) बेल्हेकर
(संस्थापक/ अध्यक्ष) अरूणदादा बेल्हेकर युवा राष्ट्रनिर्माण संस्था
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