शिक्षा आंदोलन के जनक ‘कर्मवीर भाऊराव पाटिल’ : प्राचार्य दत्तात्रय जाधव

शिक्षा आंदोलन के जनक ‘कर्मवीर भाऊराव पाटिल’ : प्राचार्य दत्तात्रय जाधव

शिक्षा आंदोलन के जनक ‘कर्मवीर भाऊराव पाटिल’ : प्राचार्य दत्तात्रय जाधव

शिक्षा आंदोलन के जनक ‘कर्मवीर भाऊराव पाटिल’ : प्राचार्य दत्तात्रय जाधव

महाराष्ट्र पत्थरों की भूमि का प्रदेश है। अंजन कंचन के पास चरवाहों की भूमि है। भले ही इस मिट्टी में रत्नों का खनन न हो लेकिन नवरत्नों का खनन इस महाराष्ट्र में जरूर है। उनमें से एक चमकता हुआ रत्न रयत शिक्षण संस्था के संस्थापक कर्मवीर भाऊराव पाटिल हैं। शानदार कद-काठी, सीने तक लहराती सफेद दाढ़ी, प्रभावशाली व्यक्तित्व, पहाड़ी आवाज, अमोघ वक्तृत्व, ऋषितुल्य जैसा व्यक्तित्व।

100 साल पहले ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की आवश्यकता को पहचाननेवाले कर्मवीर भाऊराव पाटिल ग्रामीण शिक्षा आंदोलन के जनक हैं। पूरे महाराष्ट्र में अनवानी (नंगे पांव) घूमकर कर्मवीर भाऊराव पाटिल ने गरीबों की झोपड़ी तक शिक्षा की गंगोत्री को पहुंचाने का काम किया। लोगों को शिक्षा का महत्व समझाकर उन्हें अपने कार्यों में सहभागी बनाया। कर्मवीर जानते थे कि लोकतंत्र का मूल लोक शिक्षा है और सार्वजनिक शिक्षा समाज को विकास की ओर ले जाती है।

भाऊराव पाटिल एक तरफ बहुजनों और गरीबों के बीच शिक्षा का प्रसार करनेवाले नेक इंसान और दूसरी तरफ वर्तमान के सभी शिक्षा सम्राट। उनके कार्यों से ही जनता ने उन्हें कर्मवीर की उपाधि बहाल की। कर्मवीर भाऊराव पाटिल जो साहसपूर्वक कहते हैं कि एक बार जन्म देनेवाले पिता का नाम बदल दिया जाएगा, लेकिन कॉलेज को दिया गया शिवाजी महाराज का नाम नहीं बदला जाएगा।
कोल्हापुर जिला राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज की विचारधारा एवं प्रगतिशील जिला। इसी जिले के कुम्भोज गाँव में 22 सितम्बर 1887 को भाऊराव पायगोंडा पाटिल का जन्म हुआ था। भाऊराव पाटिल के पिता पायगोंडा पाटिल एक क्लर्क थे। भाऊराव की प्राथमिक शिक्षा विटे, दहिवडी, उनके पिता के स्थानान्तरण स्थान में हुई। उन्होंने 1902 से 1907 तक कोल्हापुर के राजापुर हाई स्कूल में पढ़ाई की। पढ़ाई से ज्यादा वे कुश्ती, तैराकी, नौकायन जैसे खेलों में निपुण थे। उन्होंने छठी कक्षा तक अंग्रेजी की पढ़ाई की थी। हालाँकि वे स्कूल में बहुत कुछ नहीं सीख पाए, लेकिन उन्होंने सामुदायिक स्कूल में वास्तविक अर्थों में सीखा। लोगों और स्थितियों के बारे में भी उन्होंने पढ़ा। उस समय के अंग्रेजी कक्षा छठी यानी फिलहाल की 10 वीं का अध्ययन करनेवाले कर्मवीर भाऊराव पाटिल ने ज्ञान की गंगा घर-घर पहुंचाई। उन्होंने अपने काम से ऐसी उपाधि और सम्मान अर्जित किये, जिससे कई विश्वविद्यालयों को शर्मसार होना पड़ा।

4 अक्टूबर 1919 को भाऊराव ने रयत शिक्षण संस्था की स्थापना की। आज रयत शिक्षण संस्था का वटवृक्ष महाराष्ट्र के 14 जिलों और कर्नाटक के कुछ जिलों में फैल गया है। एशियाई क्षेत्र का सबसे बड़ा शैक्षणिक संस्था के रुप में रयत शिक्षण संस्था को जाना जाता है। संस्था को स्वायत्त विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त है। जिस किसान के पास अपना खेत होता है वह रयत होता है और रयत को शिक्षा प्रदान करनेवाली संस्था के रूप में उस संस्था का नाम रयत शिक्षण संस्था दिया गया है। शैक्षिक कार्य का वट वृक्ष परिश्रम, स्वावलंबन और समानता के तीन सिद्धांतों पर आधारित है। संगठन के इस कार्य में कर्मवीर भाऊराव पटल की पत्नी लक्ष्मीबाई ने उनका बहुमूल्य सहयोग दिया। आत्मनिर्भर शिक्षा हमारा आदर्श वाक्य है, रयत शिक्षण संस्था का आदर्श वाक्य है। कर्मवीर भाऊराव पाटिल सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महात्मा फुले, राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज और महात्मा गांधी के कार्यों और विचारों से प्रभावित थे।
1910 से कर्मवीर भाऊराव ने खादी का व्रत स्वीकार किया और अंत तक इसका पालन किया। पुणे विश्वविद्यालय यानी वर्तमान सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय ने भाऊराव को शैक्षणिक और सामाजिक कार्यों के लिए डी.लिट. की उपाधि देकर सम्मानित किया, जनता ने उन्हें कर्मवीर की उपाधि दी। कर्मवीर भाऊराव को 26 जनवरी 1959 को भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। तब भाऊराव ने कहा था कि जनता जनार्दन ने मुझे जो कर्मवीर की उपाधि दी है, वह उससे भी श्रेष्ठ है। वह अपने नाम के नीचे रयतसेवक की उपाधि का प्रयोग करते थे।

मैं नहीं चाहता कि एक व्यक्ति एक लाख रुपये दे, मैं चाहता हूं कि एक रुपये देनेवाले एक लाख लोग चाहता हूं। ऐसी दृष्टि और नये दृष्टिकोणवाले दूरदर्शी विचारक हैं कर्मवीर भाऊराव पाटिल। 9 मई 1959 को कर्मवीर भाऊराव पाटिल का निधन हो गया। सौ से डेढ़ सौ वर्षों में भाऊराव जैसा शिक्षा का कोई महर्षि पैदा नहीं हुआ। कर्मवीर के बारे में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू कहते हैं, कर्मवीर भाऊराव पाटिल ने महाराष्ट्र के शिक्षा क्षेत्र में एक महान क्रांति की।

महात्मा गांधी ने सातारा में भाऊराव पाटिल के छात्रावास का दौरा किया। छात्रावास को देखकर उन्होंने कहा, भाऊराव, जो मैं साबरमती आश्रम में नहीं कर सका, वह आपने यहां चमत्कार कर दिखाया है। पूर्व उपप्रधानमंत्री दिवंगत यशवंतराव चव्हाण कहते हैं कि कर्मवीर ने शिक्षा का एक नया चरण शुरू किया और आधुनिक महाराष्ट्र का निर्माण किया।
आधुनिक शिक्षा के महर्षि, ज्ञान भगीरथ कर्मवीर भाऊराव पाटिल को उनकी 137वीं जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि।

IMG-20240920-WA0015-204x300 शिक्षा आंदोलन के जनक ‘कर्मवीर भाऊराव पाटिल’ : प्राचार्य दत्तात्रय जाधव
लेखन- प्राचार्य दत्तात्रय जाधव
साधना विद्यालय और आर. आर. शिंदे जूनियर कॉलेज, हड़पसर
-आजीवन सदस्य रयत शिक्षण संस्था सातारा

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