उदात्त जीवन की ओर भाग-8
ऊपर कहा गया है कि ‘महान कार्य’ करने वाला ही ‘महापुरुष’ कहलाता है। महान कार्य के लिए महान परिश्रम भी अपेक्षित है। मनीषियों का मानना है कि परिश्रम ही प्रतिभा है। बिना परिश्रम के किसी भी प्रतिभा का समुचित विकास नहीं हो सकता। परिश्रम ही उद्यमशीलता है। उद्यमशीलता से ही नाना प्रकार की उपलब्धियाँ और संमृद्धियाँ प्राप्त होतीं हैं। उद्यमशीलता के लिए समय का नियोजन करना परम आवश्यक है। जो व्यक्ति समय को बरबाद करता है, समय भी उसे बरबाद किए बिना नहीं छोड़ता। कहते हैं कि लोकमान्य तिलक जब अपने अंतिम समय पर बेचैनी से गुजर रहे थे, तब किसी ने उनसे पूछा कि अब आप कैसा महसूस कर रहे हैं? उन्होंने उत्तर दिया कि, मैंने बहुत सारा समय यूं ही बरबाद किया, अब समय मुझे बरबाद करने पर तुल गया है। मांगने पर भी अब पांच मिनट नहीं मिल रहे हैं। सम्राट अकबर के एक नवरत्न, ‘अब्दुल रहीम खां खाना’ समय के संबंध में कहते हैं-
समय लाभ सम लाभ नहिं, समय चूक सम चूक। रहिमन चतुरन चित लगी, समय चूक की हूक।
गांधी जी की डायरियां पढ़ने से पता चलता है किस प्रकार वे अपना जीवन घड़ी की सुई के अनुसार चलाते थे। सभी के पास दिन-रात में चौबीस घंटों का समय ही होता है। गांधी जी के पास भी 24 घंटे ही थे। किन्तु कितने प्रकार के काम वे इन 24 घंटों में किया करते थे यह देख कर आश्चर्य होता है। आटे की चक्की चलाना, सूत कातना, परचुरे शास्त्री जैसे कुष्ट रोगियों की अपने हाथ से मरहम पट्टी करना, नित्य घूमने जाना, दोनों समय सामूहिक प्रार्थना करना, प्रार्थना सभा में प्रवचन देना, लोगों को निसर्गोपचार की शिक्षा देना, सुबह से शाम तक देश-विदेश के लोगों से मिलना, उनसे विभिन्न समस्याओं पर चर्चा करना, अपनी साप्ताहिक और पाक्षिक पत्रिकाओं के लिए संपादकीय लेख लिखना, प्रति दिन आए हुए पत्रों के उत्तर भी उसी दिन लिख देना, रात्रि विश्राम से पूर्व प्रति दिन डायरी लेखन करना और भी न जाने कितने प्रकार के कार्यों को वे प्रतिदिन अंजाम देते थे। यह सब कुछ ‘समय प्रबंधन’ की कला पर निर्भर करता है। जो लोग ‘समय प्रबंधन’ (ढळाश चरपरसशाशपीं) पर ध्यान नहीं देते, वे ही समय के अभाव का रोना धोना करते रहते हैं।
समय नियोजन का सारा महल ‘निरालस्य’ या ‘अप्रमाद’ की नींव पर खड़ा होता है। यह नींव तनिक भी हिली नहीं कि समय नियोजन का पूरा महल, तास के पत्तों के महल की तरह क्षण भर में बिखर जाता है। प्रमाद मनुष्य का सबसे प्रमुख तथा प्रवल शत्रु है। जीवन के संग्राम में सबसे पहला युद्ध प्रमाद के साथ ही लड़ा जाता है। जो इसमें विजयी होता है, वही उद्यमशीलता के क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है। व्यक्ति कितना ही बलवान हो, कितना ही बुद्धिमान हो, कितना ही प्रतिभाशाली हो, कितना ही चिंतक-विचारक, ज्ञानी और वक्ता हो, यदि वह अपने व्यक्तित्व में निहित प्रमाद को परास्त नहीं कर सकता तो कुछ भी नहीं कर सकता। प्रमाद कैसे परास्त किया जाता है? प्रमाद परास्त किया जाता है, ‘संकल्प’ से।
डॉ. केशव प्रथमवीर
पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष
सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ
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