जुन्नर, आंबेगांव, खेड़ और शिरूर तालुकाओं के 233 अत्यधिक संवेदनशील गांवों को ‘संभावित तेंदुआ आपदा क्षेत्र’ घोषित
पुणे, जून (जिमाका)
जुन्नर वन प्रभाग में पिछले 5 वर्षों में तेंदुओं के हमलों के कारण मानव चोटों और मौतों की घटनाओं पर विचार करते हुए जिलादंडाधिकारी और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अध्यक्ष डॉ. सुहास दिवसे ने आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धाराएँ (30) (2) (iii) और (iv) के अंतर्गत जुन्नर, आंबेगांव, शिरूर, खेड तालुका के 233 अत्यधिक संवेदनशील गांवों को ‘तेंदुआ आपदा संभावित क्षेत्र’ घोषित किया गया है।
जिले के उत्तर में जुन्नर, आंबेगांव, खेड़ और शिरूर के चार तालुकाओं को जुन्नर वन प्रभाग में शामिल किया है और इस वन प्रभाग के क्षेत्र प्रबंधन के संदर्भ में क्रमश: जुन्नर, ओतूर, मंचर, बोडेगांव, खेड, चाकण व शिरुर इन सात वन क्षेत्रों में विभाजित है। जुन्नर वन प्रभाग का अधिकांश क्षेत्र पहाड़ी है और इसमें सिंचाई विभाग की सिंचाई परियोजनाएँ हैं। इसमें मुख्य रूप से घोड़ और कुकडी परियोजनाओं के तहत डिंभे, माणिकडोह, पिपलगांव जोगे, बडन, चिल्हेवाडी, चासकमान ऐसे माध्यम और लघु परियोजनाओं के कारण सिंचाई सुविधा बढ़ी है।
पानी की उपलब्धता के कारण, गन्ना, केला, अंगूर, अनार ऐसे दीर्घकालिक बागवानी फसले बड़ी संख्या में होते हैं। इस दीर्घकालिक फसलों में तेंदुओं को छिपने के लिए सबसे अच्छा आश्रय और पानी की एक बड़ी उपलब्धता है। इसके अलावा, कृषि व्यवसाय के कारण मानव की पालतू जानवरों के साथ खेत में निवासियों में वृद्धि हुई है। इस कारण पालतू जानवर शिकार के रूप में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और ऐसे बागवानी क्षेत्रों में तेंदुओं का निवास स्थान बन गया है। तेंदुओं का निवास स्थान मुख्यतः गन्ने की खेती है। ऐसे में पिछले 23 वर्षों से इस वन विभाग में मानव-तेंदुआ संघर्ष में वृद्धि हुई है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून संस्था के माध्यम से जुन्नर वन प्रभाग के भीतर किए गए एक अध्ययन के अनुसार इस क्षेत्र में तेंदुए के वन्यजीवों की आबादी प्रति घनत्व 100 वर्ग किमी में 6 से 7 तेंदुए प्राप्त हुई है। इसके अलावा, मनुष्यों और पशुओं पर तेंदुओं के हमलों को देखते हुए, जुन्नर, आंबेगांव, खेड़ और शिरूर तालुका में तेंदुओं की कुल संख्या लगभग 400 से 450 होने की संभावना है। जुन्नर वन प्रभाग में पिछले 5 वर्षों में तेंदुओं के हमलों के कारण कुल 40 गंभीर चोटें और 16 मौतें हुई हैं। इस क्षेत्र में मनुष्यों पर तेंदुए के हमले की घटनाओं में वृद्धि हुई है और उक्त क्षेत्र मानव-तेंदुआ संघर्ष का आपदा क्षेत्र बन गया है। तेंदुए के हमलों के कारण होने वाली चोटों और मौतों की सीमा को देखते हुए क्षेत्र को संभावित तेंदुआ आपदा संभावित क्षेत्र घोषित किया गया है। ऐसा आदेश में उल्लेख किया गया है।
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