घटते वन, बढ़ते प्रदूषण ने अनमोल जिंदगी कर दी कम
21 मार्च अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस पर विशेष
मनुष्य के मूलभूत जीवनावश्यक घटकों से खिलवाड़ करके अन्य भौतिक सुख-सुविधा प्राप्त करना ही अब उद्देश्य बन गया है, तो हम किस आधार पर इस आधुनिक विकास को मनुष्य का सर्वांगीण विकास कहें? मनुष्य को स्वस्थ जीवन के लिए शुद्ध ऑक्सीज़न, स्वच्छ जल और स्वास्थ्यकर आहार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिसके बिना जीवन की कल्पना बेमानी है। दुनिया में आज कितने प्रतिशत लोगों को यह आवश्यक घटक शुद्ध रूप में प्राप्त हो रहे हैं? हम सभी को पता है कि अमीर हो या गरीब सभी प्रदूषित वातावरण में जीने को मजबूर हैं। आज के समय में कोई नहीं बता सकता कि भोजन की थाली में खाद्य पदार्थ कितना शुद्ध है और यही कारण है कि गर्भवती माताओं के पेट में पल रहे शिशु से लेकर हर उम्र के व्यक्ति में जानलेवा बीमारियों में बेतहाशा वृद्धि हुई है, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, कैंसर जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। आज हम जिस तरह के वातावरण में सांस ले रहे हैं, निश्चित ही भविष्य में नई-नई बीमारियों का साम्राज्य बढ़ना तय है। इस स्थिति के लिए केवल मनुष्य ही जिम्मेदार है। विकास के नाम पर प्रकृति के साथ खिलवाड़, नीति-नियमों की अवहेलना और स्वार्थवृत्ति ने आमजन के जीवन की डोर को बेहद कमजोर कर दिया है।
पेड़ सजीवों के लिए सबसे बड़ा जीवनदाता है, पेड़-पौधों के बिना प्रकृति का अस्तित्व नहीं हो सकता और प्रकृति के बिना मनुष्य का अस्तित्व नहीं हो सकता। पेड़-पौधों के कारण ही हमें शुद्ध ऑक्सीजन, पानी, आहार प्राप्त होता है। प्रकृति मनुष्य की हर इच्छा पूरी कर सकती है, लेकिन उनका लालच नहीं। हर साल 21 मार्च को वनों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस दुनियाभर में मनाया जाता है। इस वर्ष 2024 की थीम ‘वन और नवाचार’ है। हमारे जंगल कम हो रहे हैं, वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में 6.6 मिलियन हेक्टेयर जंगल नष्ट हो गए। जनसंख्या और शहरीकरण में वृद्धि के कारण, अधिक भूमि की लगातार बढ़ती मांग के कारण, आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन व अधिक वन क्षेत्रों को ख़त्म किया जा रहा है। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि से भी वनों का क्षरण हो रहा है। डाउन टू अर्थ के अनुसार, भारत में वनों की कटाई 1990 और 2000 के बीच 3,84,000 हेक्टेयर से बढ़कर 2015 और 2020 के बीच 6,68,400 हेक्टेयर हो गई। जब जंगल ख़त्म होते हैं तो इसका सीधा असर पर्यावरण के हर घटक पर पड़ता है और वह जीवन को बुरी तरह प्रभावित करता है।
पर्यावरणीय जोखिम वैश्विक बीमारी के बोझ का 12% कारण बनते हैं, जिसमें वायु प्रदूषण पहले स्थान पर है। बीएमजे के अनुसार, सूक्ष्म कणों और ओजोन वायु प्रदूषण के कारण हर साल 83.4 लाख लोग जान गंवाते हैं, जबकि प्रदूषण और स्वास्थ्य पर लांसेट कमीशन ने बताया कि 2015 में 90 लाख असामयिक मौतों के लिए प्रदूषण जिम्मेदार था, अर्थात दुनिया भर में छह में से एक मौत प्रदूषण से, और कुल 4.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (वैश्विक आर्थिक उत्पादन का 6.2%) का आर्थिक नुकसान हुआ। जल प्रदूषण 14 लाख असामयिक मौतों के लिए जिम्मेदार था। सीसा और अन्य रसायन वैश्विक स्तर पर हर साल 18 लाख मौतों के लिए ज़िम्मेदार था। विषाक्त व्यावसायिक खतरे 8.7 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार थे। अनुमान है कि मृदा प्रदूषण के प्रति मानव जोखिम हर साल वैश्विक स्तर पर 5 लाख से अधिक असामयिक मौतों का कारण बनता है। विकासशील देशों में खराब प्रबंधन वाले कचरे से जुड़ी बीमारियों और दुर्घटनाओं के कारण हर साल चार से दस लाख लोग मरते हैं। प्रदूषण से संबंधित 90% से अधिक मौतें कम आय और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। जीबीडी 2019 रिसर्च अनुसार, वायु प्रदूषण, सीसा प्रदूषण और व्यावसायिक प्रदूषकों से पुरुषों की मृत्यु होने की अधिक संभावना है, जबकि जल प्रदूषण से महिलाओं और बच्चों की मृत्यु की संभावना अधिक होती है। ओजोन और पार्टिकुलेट मैटर जैसे वायु प्रदूषक फेफड़ों, हृदय रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की गंभीरता को बढ़ाते हैं। बीएमजे में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि उद्योग, बिजली उत्पादन और परिवहन में जीवाश्म ईंधन के उपयोग से उत्पन्न वायु प्रदूषण दुनिया भर में सालाना 51 लाख टाले जा सकने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार है।
मिलावट खोरी का देश में ये हाल है कि अपने 1 रुपये के फायदे के लिए स्वार्थी लोग ग्राहकों को स्लो पाइजन के रूप में हानिकारक खाद्य पदार्थ खिलाते हैं। खाद्य तेल, मसाले, दूध, मिठाई, नमकीन, अनाज हर पदार्थ में शुद्धता का दावा झूठा साबित होता दिखता है। रिसर्च कहता है कि हर तीसरा व्यक्ति मिलावटी दूध का सेवन कर रहा है, खाद्य पदार्थों में मिलावट का जहर भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। पहले ही देश के बदलते खान-पान से बहुत विपरीत प्रभाव पड़ा है। स्वास्थ्यकर आहार की जगह तेल, मसाले, नमकीन, मीठे और पाचन में भारी खाद्य पदार्थों की मांग लगातार बढ़ रही है। फसल उगाने से लेकर उस भोजन को थाली में पहुंचने तक भारी मात्रा में अनेक हानिकारक रासायनिक प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है। खेतों में रासायनिक खाद का छिड़काव, अनाज पर पॉलिश, चमकदार कृत्रिम रंगों का प्रयोग, फलों को पकाने में घातक रसायनों का प्रयोग, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों और पेयों में रासायनिक प्रक्रिया खाद्य को विषाक्त बनाती हैं। साथ ही बाहरी खाद्यपदार्थों में अस्वछता की समस्या भी गंभीर मुद्दा है।
दुनिया में आहार संबंधी मृत्यु दर पर ‘लैंसेट’ पत्रिका 2019 में प्रकाशित एक अध्ययन में खराब आहार के कारण होने वाली सबसे अधिक मौतों के मामले में भारत 1,573,595 आंकड़ों के साथ चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। युवा सस्ते और अस्वास्थ्यकर भोजन विकल्पों का सहारा ले रहे हैं, जिनमें मुख्य रूप से स्नैक्स शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया में अनुमानित 60 करोड़ लोग, लगभग 10 में से 1 व्यक्ति दूषित भोजन से बीमार पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप 3.3 करोड़ स्वस्थ जीवन वर्ष का नुकसान होता है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में असुरक्षित भोजन के कारण उत्पादकता और चिकित्सा व्यय में हर साल 8.65 लाख करोड़ का नुकसान होता है। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर भोजन जनित बीमारियों का 40% बोझ होता है और हर साल 1,25,000 मौतें होती हैं। हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी या रासायनिक पदार्थों से युक्त असुरक्षित भोजन डायरिया से लेकर कैंसर तक 200 से अधिक बीमारियों का कारण बनता है। यह बीमारी और कुपोषण का एक दुष्चक्र भी बनाता है, विशेष रूप से शिशुओं, छोटे बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों को प्रभावित करता है। खाद्य जनित बीमारियों के आर्थिक बोझ पर विश्व बैंक की रिपोर्ट 2019 ने संकेत दिया कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में खाद्य जनित बीमारी से जुड़ी कुल उत्पादकता हानि प्रति वर्ष 78,89,79,52,00,000 रुपये अनुमानित थी और खाद्य जनित बीमारियों के इलाज की वार्षिक लागत अनुमानत 12,42,91,05,00,000 रुपये थी।
सौ बात की एक बात, भौतिक सुख-सुविधा कभी भी मूलभूत जरूरतों की जगह नहीं ले सकती। हर कोई अपने आसपास सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ते देखते हैं लेकिन विरोध करने की हिम्मत नहीं करते। शुद्ध हवा, पानी, खाद्य हर मनुष्य, पशु-पक्षी, वन्यजीवों की आवश्यकता हैं। पेड़ों से जंगल हैं, वन समृद्ध तो वन्यजीवों का अधिवास संरक्षित है, जलस्त्रोत समृद्ध होते हैं, ऋतुचक्र संतुलित बना रहता है। खेतों में फसल लहलहाती है, प्रकृति में खाद्य शृंखला ठीक ढंग से चलती हैं। ओजोन परत सुरक्षित रहती है, मनुष्य में रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़कर बीमारियों का प्रादुर्भाव कम होता है। प्रदूषण नियंत्रण में मदद मिलती है, मनुष्य से लेकर सभी प्रकार के पशु-पक्षी जीवों को शुद्ध हवा-पानी-आहार प्राप्त होता है। वन्यजीव और मानव के बीच बढ़ते संघर्ष को रोका जा सकेगा। सरकार ने भी जंगलों को समृद्ध करने, प्रदूषण और मिलावटखोरी पर लगाम कसने के लिए अधिक सख्त कानून बनाने चाहिए और उन नियमों पर पूरी तरह से अमल होना हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है।
-लेखक : डॉ. प्रितम भि. गेडाम
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